देसरी प्रखंड सह अंचल कार्यालय के भवन निर्माण में प्रशासन की उदासीनता: रंजीत पंडित का आरोप,भूमि उपलब्ध नहीं कराने वाले पदाधिकारियों पर कार्रवाई की माँग, मुख्यमंत्री को भेजा गया पत्र,

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देसरी प्रखंड सह अंचल कार्यालय के भवन निर्माण में प्रशासन की उदासीनता: रंजीत पंडित का आरोप

भूमि उपलब्ध नहीं कराने वाले पदाधिकारियों पर कार्रवाई की माँग, मुख्यमंत्री को भेजा गया पत्र





देसरी (वैशाली), 10 दिसंबर 2025।
देसरी प्रखंड सह अंचल कार्यालय के भवन निर्माण को लेकर चल रही वर्षों पुरानी समस्या एक बार फिर चर्चा में है। भवन निर्माण के लिए भूमि उपलब्ध नहीं होने के मुद्दे पर देसरी प्रखंड परिवर्तन संघर्ष मोर्चा ने मुख्यमंत्री को दोबारा पत्र भेजकर कार्रवाई की मांग की है। मोर्चा के सचिव और आरटीआई कार्यकर्ता रंजीत पंडित ने आरोप लगाया है कि जिला प्रशासन की उदासीनता के कारण पिछले 26 वर्षों में भी भवन निर्माण का कार्य शुरू नहीं हो सका है, जिससे जनता और प्रशासन दोनों परेशान हैं।


1999 में प्रखंड की स्थापना, लेकिन 2025 तक भी नहीं बना अपना भवन

26 वर्षों से अव्यवस्थित दफ्तरों में चल रहा है प्रशासनिक कामकाज

मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में रंजीत पंडित ने उल्लेख किया है कि—

  • देसरी प्रखंड की स्थापना 03 दिसंबर 1999 को हुई।

  • 26 वर्ष बीत जाने के बाद भी प्रखंड सह अंचल कार्यालय का स्वतंत्र भवन नहीं बन सका

  • ग्रामीण विकास विभाग ने 2012 से ही भवन निर्माण की जरूरत के मद्देनजर भूमि उपलब्ध कराने के लिए जिला प्रशासन को पत्र भेजे, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

आज की तारीख में स्थिति यह है कि—

  • प्रखंड कार्यालय—व्यापार मंडल के उत्पादन सह भंडारण केंद्र से संचालित हो रहा है।

  • प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO)—एक छोटे कमरे में बैठकर काम करते हैं।

  • अन्य कर्मचारी—एक ही बड़े कमरे में बैठकर समूचे कार्यालय का कार्य संभालते हैं।

  • अंचल कार्यालय—कृषि भवन से संचालित होता है।

प्रखंड और अंचल दोनों कार्यालय भवनहीन स्थिति में काम कर रहे हैं, जिससे न केवल कार्यक्षमता प्रभावित होती है बल्कि आम जनता को भी असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।


RTI से खुलासा: विभाग के पास भू-अर्जन प्रस्ताव अप्राप्त

ग्रामीण विकास विभाग ने दी जानकारी, जिला प्रशासन पर उठे सवाल

आरटीआई के तहत मिली जानकारी में ग्रामीण विकास विभाग ने स्पष्ट कहा है कि—

“देसरी प्रखंड सह अंचल कार्यालय सह आवासीय भवन निर्माण हेतु भू-अर्जन प्रस्ताव विभाग को प्राप्त नहीं हुआ है। जिला प्रशासन की ओर से भूमि उपलब्ध कराने संबंधी कोई प्रस्ताव नहीं भेजा गया।”

इस सूचना से यह साफ होता है कि निर्माण के लिए विभागीय स्तर पर कोई बाधा नहीं है, बल्कि प्रस्ताव भेजने की जिम्मेदारी जिला स्तर पर पूरी नहीं की गई है।
इसी आधार पर मोर्चा के सचिव रंजीत पंडित ने आरोप लगाया—

“जिला प्रशासन की उदासीनता और लापरवाही के कारण भवन निर्माण 26 सालों से लंबित है। जनता की सुविधा से जुड़े ऐसे महत्वपूर्ण कार्य को हल्के में लिया जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”


भूमि उपलब्ध नहीं कराने वाले पदाधिकारियों पर कार्रवाई की माँग

मुख्यमंत्री को भेजा गया पत्र, जल्द भूमि उपलब्ध कराने की अपील

रंजीत पंडित ने मुख्यमंत्री से मांग की कि—

  1. भवन निर्माण के लिए तत्काल भूमि उपलब्ध कराई जाए।

  2. इतने वर्षों तक इस मुद्दे पर ध्यान न देने वाले पदाधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।

  3. प्रखंड और अंचल कार्यालयों को व्यवस्थित भवन में स्थानांतरित किया जाए ताकि आम जनता को राहत मिले।

उन्होंने पत्र में लिखा है कि—

“जब अंचलाधिकारी खुद भूमि प्रबंधन के प्रभारी होते हैं और उन्हीं के कार्यालय के लिए भूमि उपलब्ध नहीं हो रही है, तो यह सरकारी कार्यप्रणाली की विफलता का स्पष्ट उदाहरण है।”


देसरी मोर्चा ने जताई नाराजगी, आंदोलन की चेतावनी

मांगें पूरी नहीं होने पर होगा बड़ा जनआंदोलन

देसरी प्रखंड परिवर्तन संघर्ष मोर्चा ने इस मुद्दे पर सामूहिक रूप से नाराजगी जताई है।
मोर्चा के अध्यक्ष कमलदेव सिंह और अन्य सदस्यों—
विजय राय, रत्नेश कुमार सिंह, अभिषेक कुमार सिंह, संजीव राय, सोहन कुमार, प्रदीप कुमार सिंह, सुबोध पासवान, सुरेश पासवान, मनीष कुमार, मुकेश कुमार, खुशबू कुमारी, सौरभ कुमार, दयानन्द—ने संयुक्त बयान जारी कर कहा—

“यदि जल्द भूमि उपलब्ध कर भवन निर्माण शुरू नहीं कराया गया, तो हम जनहित में बड़ा आंदोलन करेंगे। यह सिर्फ एक कार्यालय भवन की बात नहीं, बल्कि पूरे प्रखंड की गरिमा और प्रशासनिक सुविधा से जुड़ा मुद्दा है।”


भवन ना होने से जनता को क्या नुकसान?

प्रतिदिन सैकड़ों लोगों को झेलनी पड़ती है परेशानी

यह कार्यालय भवनहीन होने की स्थिति केवल प्रशासन के लिए ही नहीं, बल्कि आम जनता के लिए भी अत्यंत कष्टकारी है।

1. भीड़ और अव्यवस्थित माहौल

छोटे कमरों में स्टाफ और जनता दोनों का बैठना मुश्किल होता है।

2. रिकॉर्ड सुरक्षित रखने में दिक्कत

जगह की कमी के कारण महत्वपूर्ण सरकारी रिकॉर्ड सुरक्षित रखना चुनौतीपूर्ण है।

3. सेवाओं में देरी

अव्यवस्थित वातावरण के कारण प्रमाणपत्र, रसीद, भुगतान आदि में समय लगता है।

4. ग्रामीण क्षेत्रों से आने वालों की परेशानी

दूर-दराज़ गांवों से आने वाले लोगों को लंबी लाइन और भीड़ में परेशानी झेलनी पड़ती है।

5. प्रशासनिक कार्यों की गुणवत्ता प्रभावित

भवन और संसाधनों के अभाव में कर्मचारी भी कार्यक्षमता के साथ काम नहीं कर पाते।


2012 से पत्राचार, पर समस्या जस की तस

सरकारी फाइलों में धरी रह गई प्रखंड की 'मूलभूत आवश्यकता'

देसरी प्रखंड परिवर्तन संघर्ष मोर्चा के अनुसार 2012 से लेकर 2025 तक—

  • ग्रामीण विकास विभाग

  • भूमि सुधार विभाग

  • जिला प्रशासन

  • स्थानीय जनप्रतिनिधि

इन चारों स्तरों पर कई बार पत्राचार हुआ।
लेकिन न तो भूमि चिह्नित की गई और न ही अधिग्रहण प्रस्ताव भेजा गया।

यह लापरवाही सरकारी व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़ा करती है कि—

“क्या 26 वर्ष बाद भी जनता को एक व्यवस्थित कार्यालय उपलब्ध नहीं कराया जा सकता?”


मोर्चा की दृढ़ता: जनता के अधिकारों की लड़ाई जारी

मोर्चा के नेताओं ने कहा कि यह केवल एक आंदोलन नहीं, बल्कि देसरी प्रखंड की गरिमा को स्थापित करने की लड़ाई है।
सचिव रंजीत पंडित ने कहा—

“एक तरफ सरकार ‘सुशासन’ और ‘सुविधा’ की बात करती है, दूसरी तरफ 26 वर्ष पुराने प्रखंड के लिए भवन तक उपलब्ध नहीं कराया गया। यह जनता का अपमान है, और हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे।”

मोर्चा ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि प्रशासन जल्द कार्रवाई नहीं करता तो जनसभा, धरना और आंदोलन जैसी गतिविधियाँ की जाएंगी।


देसरी प्रखंड सह अंचल कार्यालय के भवन निर्माण का मामला 26 वर्षों से लंबित है।
आज भी प्रशासन व्यापार मंडल के स्टोरनुमा कमरों और कृषि भवन के सहारे काम कर रहा है।
सरकारी विभागों की उदासीनता और जिला प्रशासन की निष्क्रियता ने इस समस्या को और गहरा कर दिया है।

मोर्चा की मांगें व्यावहारिक और जनहित में हैं—

  • भूमि की उपलब्धता

  • भवन निर्माण की शुरुआत

  • जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई

यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो यह मुद्दा जल्द ही बड़े जनआंदोलन का रूप ले सकता है।
अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री कार्यालय और जिला प्रशासन इस गंभीर समस्या पर क्या निर्णय लेता है।



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