ड्यूटी के दौरान जातिवादी रील: सराय थाना में तैनात सिपाही पर उठे गंभीर सवाल,

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ड्यूटी के दौरान जातिवादी रील: सराय थाना में तैनात सिपाही पर उठे गंभीर सवाल





वैशाली जिले के सराय थाना से जुड़ा एक मामला इन दिनों चर्चा में है, जिसने पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली और अनुशासन पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। सोशल मीडिया के दौर में जहां आम नागरिकों से जिम्मेदार व्यवहार की अपेक्षा की जाती है, वहीं एक वर्दीधारी पुलिसकर्मी द्वारा कथित रूप से ड्यूटी के दौरान जातिवादी रील बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करना न केवल नियमों का उल्लंघन माना जा रहा है, बल्कि इससे पुलिस की निष्पक्षता और सामाजिक समरसता की छवि पर भी असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।

क्या है पूरा मामला

प्राप्त जानकारी के अनुसार, सराय थाना में तैनात सिपाही मनीष कुमार पर आरोप है कि उन्होंने अपनी ड्यूटी के दौरान जातिवादी और आपत्तिजनक गानों पर रील बनाकर अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर साझा की। सामने आए वीडियो में कथित तौर पर देखा जा सकता है कि सिपाही नाइट ड्यूटी के समय सरकारी वाहन से उतरकर रील बनाते हैं और उसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड करते हैं।

इन वीडियो के सार्वजनिक होने के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या ड्यूटी के समय इस तरह की गतिविधियां पुलिस नियमावली के अनुरूप हैं, और क्या इससे कानून-व्यवस्था तथा विभागीय अनुशासन प्रभावित नहीं होता।

ड्यूटी के समय सोशल मीडिया गतिविधि

पुलिस विभाग में कार्यरत किसी भी कर्मी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ड्यूटी के दौरान पूरी निष्ठा और अनुशासन के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करे। लेकिन आरोप है कि सिपाही मनीष कुमार दिन और रात—दोनों समय की ड्यूटी के दौरान रील बनाते हुए नजर आए हैं।

कथित वीडियो में उन्हें न केवल सरकारी संसाधनों का उपयोग करते हुए देखा गया है, बल्कि कुछ वीडियो में जाति विशेष से जुड़ी सामग्री भी दिखाई देती है, जिसे कई लोग आपत्तिजनक और समाज को बांटने वाला बता रहे हैं।

हथियार के साथ वीडियो का आरोप

मामले को और गंभीर बनाता है एक अन्य वीडियो, जिसमें सिपाही मनीष कुमार को नाइट ड्यूटी के दौरान सराय थाना परिसर से हथियार लेकर बाहर निकलते हुए दिखाया गया है। यदि यह वीडियो वास्तविक और प्रमाणित पाया जाता है, तो यह न केवल सोशल मीडिया आचरण का उल्लंघन होगा, बल्कि सुरक्षा और हथियार उपयोग से जुड़े नियमों पर भी सवाल खड़े करता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि हथियार के साथ इस तरह के वीडियो बनाना और उसे सोशल मीडिया पर साझा करना अत्यंत गैर-जिम्मेदाराना आचरण की श्रेणी में आता है।

सोशल मीडिया और पुलिस की छवि

पुलिस को समाज में कानून का रक्षक और निष्पक्ष संस्था माना जाता है। ऐसे में जब कोई पुलिसकर्मी जातिवादी या विवादित सामग्री सोशल मीडिया पर साझा करता है, तो इसका असर केवल उस व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे विभाग की छवि पर पड़ता है।

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इन वीडियो के बाद आम जनता के बीच यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या पुलिस विभाग अपने कर्मियों के सोशल मीडिया आचरण पर पर्याप्त निगरानी रखता है या नहीं। कई लोगों ने आशंका जताई है कि इस तरह की गतिविधियां पुलिस के प्रति जनता के विश्वास को कमजोर कर सकती हैं।

नियम और आचरण संहिता

पुलिस विभाग में कार्यरत कर्मियों के लिए स्पष्ट आचरण संहिता और सोशल मीडिया गाइडलाइंस निर्धारित होती हैं। इन दिशानिर्देशों के तहत पुलिसकर्मियों को ड्यूटी के दौरान निजी वीडियो बनाने, सरकारी संसाधनों का निजी उपयोग करने और किसी भी प्रकार की जातीय, धार्मिक या राजनीतिक टिप्पणी से बचने का निर्देश दिया जाता है।

यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह मामला न केवल विभागीय अनुशासनहीनता का होगा, बल्कि सेवा नियमों के उल्लंघन की श्रेणी में भी आ सकता है।

जनता की प्रतिक्रिया

इस प्रकरण के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कई यूजर्स ने सवाल उठाया है कि जब पुलिसकर्मी ही इस तरह की कथित जातिवादी सामग्री फैलाएंगे, तो समाज में सौहार्द और कानून के प्रति सम्मान कैसे बना रहेगा।

कुछ लोगों ने विभाग से मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषी पाए जाने पर सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी पुलिसकर्मी इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने से पहले सौ बार सोचे।

विभागीय कार्रवाई की मांग

इस पूरे मामले को लेकर पुलिस विभाग की ओर से आधिकारिक प्रतिक्रिया और कार्रवाई का इंतजार किया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि यदि समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो इससे विभाग की साख को और नुकसान हो सकता है।

पुलिस मुख्यालय स्तर पर इस मामले की जांच कर तथ्यों की पुष्टि किए जाने और आवश्यकतानुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई किए जाने की मांग तेज हो रही है।


सराय थाना में तैनात सिपाही से जुड़ा यह मामला एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच सरकारी सेवकों, विशेषकर पुलिसकर्मियों, की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। वर्दी केवल अधिकार नहीं, बल्कि अनुशासन, मर्यादा और समाज के प्रति जवाबदेही का प्रतीक होती है।

यदि आरोप सही सिद्ध होते हैं, तो इस प्रकरण से यह संदेश जाना चाहिए कि ड्यूटी के दौरान अनुशासनहीनता और समाज को बांटने वाली गतिविधियों के लिए कोई स्थान नहीं है। साथ ही, यह भी जरूरी है कि पुलिस विभाग समय-समय पर अपने कर्मियों को सोशल मीडिया के जिम्मेदार उपयोग के प्रति जागरूक करे, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।


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