बिहार की राजनीति में भूचाल! — आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन टूटने की उलटी गिनती शुरू,तेजस्वी यादव का संकेत: “जो साथ चले वही साथी

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 🚨 बिहार की राजनीति में भूचाल! — आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन टूटने की उलटी गिनती शुरू 🔥


तेजस्वी यादव का संकेत: “जो साथ चले वही साथी





🔴 भूमिका: बिहार की सियासत में नई हलचल

बिहार की राजनीति में एक बार फिर से बड़ा भूचाल आया है। राजद (RJD) और कांग्रेस (Congress) के बीच का पुराना और चर्चित गठबंधन अब टूटने की कगार पर पहुंच गया है।
ABP News के वरिष्ठ पत्रकार मनोज़ मुकुल की रिपोर्ट के अनुसार, तेजस्वी यादव ने अब अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है — यानी महागठबंधन का अंत अब बस औपचारिकता भर रह गया है।

यह खबर न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की राजनीति के लिए बड़ा संकेत है — क्योंकि इससे आने वाले विधानसभा चुनावों में समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं।




🧩 पृष्ठभूमि: कैसे बना था “महागठबंधन”?

बिहार की राजनीति में महागठबंधन की नींव 2015 में रखी गई थी।
उस समय नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस तीनों दल एक साथ आए थे ताकि भाजपा को सत्ता से दूर रखा जा सके।
पहली बार इस प्रयोग ने सफलता भी दिलाई, और जनता ने इस गठबंधन पर भरोसा जताया।

हालांकि, बाद के वर्षों में नीतीश कुमार के एनडीए में लौट जाने और राजद-कांग्रेस के अकेले चलने के बाद, गठबंधन कमजोर होता चला गया।
तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद ने 2020 के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन कांग्रेस के खराब प्रदर्शन ने पूरे गठबंधन को नुकसान पहुंचाया।


अब क्यों टूटा विश्वास?

तेजस्वी यादव और कांग्रेस के बीच मतभेद पिछले कुछ महीनों से लगातार गहराते जा रहे थे।
राजद के रणनीतिकारों का मानना है कि कांग्रेस न तो बिहार में संगठनात्मक रूप से मजबूत है और न ही जमीनी स्तर पर सक्रिय।
दूसरी ओर, कांग्रेस लगातार अधिक सीटों की मांग कर रही थी — जिससे राजद के भीतर असंतोष बढ़ता गया।

🔹 मुख्य कारण:

  1. सीट शेयरिंग पर टकराव — कांग्रेस 60+ सीटें चाहती थी, जबकि राजद अधिकतम 30 देने के पक्ष में था।

  2. कांग्रेस की निष्क्रियता — स्थानीय स्तर पर कांग्रेस नेताओं की चुनावी उपस्थिति कमजोर रही।

  3. तेजस्वी यादव की नई रणनीति — वे चाहते हैं कि राजद अपने दम पर “मुख्य विपक्ष” से आगे बढ़कर “मुख्य दल” बने।

  4. दिल्ली बनाम पटना की दूरी — बिहार कांग्रेस नेतृत्व और आलाकमान के बीच सामंजस्य की कमी भी बड़ा कारण रही।


💬 तेजस्वी यादव का संकेत: “जो साथ चले वही साथी”

तेजस्वी यादव ने हाल ही में एक पार्टी बैठक में कहा था:

“राजनीति में अब वही साथ चलेगा जो जनता के मुद्दों पर हमारे साथ खड़ा रहेगा, बाकी रास्ता अलग है।”

यह बयान सीधा संकेत था कि अब वे किसी भी बोझ को ढोने के लिए तैयार नहीं हैं।
उनकी रणनीति स्पष्ट है — राजद को एक ‘स्वतंत्र और आत्मनिर्भर’ पार्टी के रूप में स्थापित करना।


🧭 कांग्रेस की स्थिति: अंदरूनी असंतोष

कांग्रेस के भीतर भी असंतोष उभर आया है।
कई प्रदेश नेता मानते हैं कि “राजद ने हमें बराबर का भागीदार नहीं माना”, जबकि कुछ नेताओं का कहना है कि “कांग्रेस को अपनी ताकत साबित करने का वक्त आ गया है।”

राजद से अलग होने के बाद कांग्रेस अब छोटे दलों या वाम दलों के साथ तालमेल की संभावना तलाश सकती है।
लेकिन चुनौती यह है कि बिहार में कांग्रेस का कोई मजबूत जनाधार नहीं बचा है।
इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस टूट के बाद अपनी “साख” कैसे बचाती है।


🔍 RJD की रणनीति: नए गठबंधन की खोज

सूत्रों के मुताबिक, तेजस्वी यादव अब नए राजनीतिक समीकरणों पर काम कर रहे हैं।
वे उन दलों से संपर्क में हैं जो क्षेत्रीय स्तर पर प्रभाव रखते हैं — जैसे वाम दल, छोटे पिछड़ा वर्गीय संगठन, और कुछ स्वतंत्र विधायक।

🎯 राजद का फोकस:

  • पिछड़ा-दलित समीकरण को और मजबूत करना।

  • युवाओं और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को केंद्र में रखना।

  • बिहार के ग्रामीण वोट बैंक पर पकड़ बनाना।

राजद इस चुनाव में खुद को “सत्ता के विकल्प” नहीं, बल्कि “सत्ता के केंद्र” के रूप में पेश करना चाहता है।


🗳️ आने वाले चुनाव पर असर

इस टूट का सीधा असर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 पर पड़ेगा।
महागठबंधन के बिखरने से भाजपा और एनडीए को फायदा मिल सकता है, क्योंकि विपक्ष का वोट अब बंट सकता है।

हालांकि, यह भी संभव है कि तेजस्वी यादव का “सोलो फाइट” स्टाइल युवाओं को आकर्षित करे और राजद को पहले से अधिक सीटें दिलाए।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर तेजस्वी अपने मुद्दों पर अडिग रहते हैं, तो RJD एक बार फिर बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।


🧠 राजनीतिक विशेषज्ञों की राय

राजनीतिक विश्लेषक अजय मिश्रा का कहना है:

“तेजस्वी यादव अब भावनात्मक राजनीति नहीं, बल्कि प्रबंधन आधारित राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने समझ लिया है कि गठबंधन अब मदद नहीं, बाधा बन रहा है।”

वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल के अनुसार:

“राजद-कांग्रेस के बीच मनमुटाव की वजह सीटें नहीं, बल्कि ‘लीडरशिप इगो’ है। तेजस्वी चाहते हैं कि कांग्रेस बिहार में उनके नेतृत्व को खुले तौर पर स्वीकार करे।”


🔮 भविष्य का समीकरण: “किंग या किंगमेकर?

अब सवाल यह है — क्या RJD खुद किंग बनेगी या फिर किंगमेकर की भूमिका निभाएगी?
तेजस्वी यादव की महत्वाकांक्षा साफ है — वे अब बिहार की सत्ता पर सीधा कब्जा चाहते हैं, न कि किसी साझा मंच से समझौता।
उनकी नई टीम में युवाओं, सोशल मीडिया वॉरियर्स और रणनीतिकारों की भूमिका अहम बताई जा रही है।

अगर राजद अकेले चुनाव लड़ती है और 100+ सीटों का आंकड़ा छू लेती है, तो तेजस्वी बिना किसी गठबंधन के “सीएम फेस” बन सकते हैं।


🗣️ जनता की प्रतिक्रिया

बिहार के अलग-अलग जिलों से मिली प्रतिक्रियाओं के अनुसार —
कई युवा मतदाता मानते हैं कि “राजद का अकेले चुनाव लड़ना साहसिक कदम है।”
वहीं, कुछ वरिष्ठ नागरिकों का कहना है कि “बिना गठबंधन के भाजपा को रोकना मुश्किल होगा।”

सोशल मीडिया पर भी #RJD #CongressBreakup और #TejashwiYadav ट्रेंड कर रहे हैं।
राजद समर्थक इसे “नई शुरुआत” बता रहे हैं, जबकि कांग्रेस कार्यकर्ता इसे “विश्वासघात” मान रहे हैं।


🏁 निष्कर्ष: बिहार की राजनीति नए दौर में

राजद-कांग्रेस गठबंधन का टूटना केवल एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में शक्ति संतुलन का नया अध्याय है।
तेजस्वी यादव अब “महागठबंधन के नेता” नहीं, बल्कि “नई राजनीति के प्रतीक” बनकर उभर रहे हैं।

आने वाले दिनों में बिहार की सियासत में नई जंग होगी —
जहां गठबंधन की मजबूरी नहीं, नेतृत्व की मजबूती तय करेगी कि जनता किसे चुनती है।


👉 अंतिम पंक्ति:
बिहार बदल रहा है — और इस बार, तेजस्वी यादव सिर्फ मोर्चा नहीं, पूरा मैदान संभालना चाहते हैं।
राजद का “अकेला सफर” क्या सत्ता तक जाएगा या इतिहास दोहराएगा — ये 2025 का चुनाव बताएगा।


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