हड़तालिखा तीज पर हाजीपुर में दिखा महिलाओं का उमंग और आस्था

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हड़तालिखा तीज पर हाजीपुर में दिखा महिलाओं का उमंग और आस्था

परंपरा और संस्कृति का अद्भुत संगम

हड़तालिखा तीज बिहार और विशेषकर वैशाली जिले के हाजीपुर में महिलाओं का प्रमुख त्योहार माना जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों को भी मजबूती प्रदान करता है। इस दिन विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत का सबसे खास पहलू यह है कि महिलाएँ दिनभर अन्न-जल का त्याग करती हैं और संध्या समय भगवान शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना कर अपने परिवार के मंगल की कामना करती हैं।





महिलाओं का उत्साह और सजधज

हाजीपुर की गलियाँ हड़तालिखा तीज पर मानो किसी उत्सव स्थल में तब्दील हो गईं। सुबह से ही महिलाएँ पारंपरिक परिधान, जैसे साड़ी और लहंगा-चुनरी पहनकर सज-धज कर तैयार होती दिखीं। हाथों में मेहंदी, पैरों में आलता और मांग में सिंदूर महिलाओं की सजीव आस्था को प्रकट कर रहे थे।
बाजारों में भीड़, पूजा सामग्री की खरीदारी, और पारंपरिक गीतों की गूंज पूरे वातावरण को भक्तिमय बना रही थी। महिलाएँ समूह में मंदिरों और पूजा स्थलों पर एकत्र होकर एक-दूसरे को तीज की शुभकामनाएँ देती दिखीं।





निर्जला व्रत की कठिनाई और संकल्प

हड़तालिखा तीज का व्रत आसान नहीं माना जाता। विवाहित महिलाएँ सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक बिना पानी पिए और बिना कुछ खाए रहती हैं। यह व्रत तपस्या और आत्मसंयम का प्रतीक है।
कई महिलाएँ मानती हैं कि इस कठिन व्रत से न केवल पति की लंबी उम्र मिलती है बल्कि परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का भी संचार होता है।
युवतियों के लिए यह व्रत अच्छे वर की प्राप्ति की कामना से जुड़ा होता है। इस प्रकार यह पर्व महिला जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूता है।


शिव-पार्वती की पूजा और कथा वाचन

शाम होते-होते घर-घर और मंदिरों में शिव-पार्वती की प्रतिमा सजाई जाती है। महिलाएँ सामूहिक रूप से गीत-भजन गाती हैं और तीज व्रत की कथा सुनती हैं।
कथा में माता पार्वती के कठोर तप का उल्लेख मिलता है, जिसके बल पर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। इसी तपस्या की स्मृति में महिलाएँ यह व्रत करती हैं।
कथा सुनने और सुनाने के बाद महिलाएँ पूजा-अर्चना कर व्रत की विधि पूर्ण करती हैं और अगली सुबह निर्जला व्रत का पारण करती हैं।


समाज में आपसी भाईचारे और मेल-जोल का अवसर

हड़तालिखा तीज केवल धार्मिक पर्व ही नहीं बल्कि सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। महिलाएँ अपने पड़ोस और रिश्तेदारी में एक-दूसरे से मिलने जाती हैं। इस दिन सखियों और सहेलियों के बीच खास मेल-जोल देखने को मिलता है।
गीत-संगीत और पारंपरिक लोकनृत्य से माहौल जीवंत हो उठता है। कई जगहों पर सामूहिक आयोजन होते हैं, जहाँ महिलाएँ मिलकर व्रत कथा का आयोजन करती हैं और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ भी देती हैं।


हाजीपुर में तीज का खास महत्व

हाजीपुर की सांस्कृतिक धरोहर में हड़तालिखा तीज का विशेष स्थान है। यहाँ के लोग इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं।
बाजारों में पूजा सामग्री, साड़ी, गहने और सौंदर्य प्रसाधनों की बिक्री से कारोबारियों के चेहरे भी खिले रहते हैं।
वहीं, ग्रामीण अंचलों से आई महिलाएँ भी मंदिरों में दर्शन करने पहुँचती हैं। इस प्रकार हड़तालिखा तीज न केवल धार्मिक आयोजन है बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी स्थानीय समाज को गति प्रदान करता है।


नई पीढ़ी में तीज का बढ़ता आकर्षण

बदलते समय के साथ भी हड़तालिखा तीज का आकर्षण कम नहीं हुआ है। बल्कि नई पीढ़ी की महिलाएँ भी इसे पूरी श्रद्धा से निभाती हैं।
आज की आधुनिक महिलाएँ चाहे नौकरीपेशा हों या छात्रा, इस पर्व को मानने में गर्व महसूस करती हैं। सोशल मीडिया पर तीज की तस्वीरें और वीडियो साझा कर महिलाएँ अपनी खुशी और आस्था को व्यक्त करती हैं। इससे यह पर्व न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी लोकप्रिय हो रहा है।



हड़तालिखा तीज महिलाओं की आस्था, तपस्या और पति-पत्नी के रिश्ते की मजबूती का पर्व है। यह केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें सामाजिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों का समावेश है।
हाजीपुर में इस पर्व के दौरान दिखने वाला उत्साह इस बात का प्रमाण है कि परंपरा और आधुनिकता दोनों साथ-साथ चल सकती हैं।
यह पर्व आने वाली पीढ़ियों को भी भारतीय संस्कृति, स्त्री शक्ति और पारिवारिक मूल्यों की गहराई से जोड़ता है।



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