जान-बूझकर नाव से गिरने का नाटक, पानी में बहाया गया केक, हरकतें कैमरे में हुई कैद
राजनीति या मनोरंजन
राजनीति को जनसेवा का माध्यम माना जाता है, लेकिन जब कोई जनप्रतिनिधि इसे तमाशा बना दे, तो सवाल उठना लाजमी है। वैशाली जिले में राजद नेता केदार यादव ने जो कुछ किया, वह किसी नाटक या हास्य प्रस्तुति से कम नहीं था। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के 78वें जन्मदिन पर उन्होंने जिस तरह से नौटंकी रची, वह अब सोशल मीडिया और खबरों की सुर्खियां बन चुकी है।
🎂 जन्मदिन का अनोखा जश्न: नाव, केक और गिरने की स्क्रिप्ट।
केदार यादव भगवानपुर प्रखंड के चौड़ इलाके में पहुंचे, जहां उन्होंने पानी से भरे गड्ढे में एक नाव को उतारा। लालू प्रसाद यादव का जन्मदिन मनाने के लिए उन्होंने उसी नाव पर केक काटने की योजना बनाई। लेकिन असली ‘ड्रामा’ तब शुरू हुआ जब वह **जानबूझकर नाव से गिरने लगे** — वह भी एक बार नहीं, बल्कि तीन बार।
पहली बार गिरने के बाद पानी में लाया गया केक बह गया। लेकिन पूरी तैयारी के तहत वह **दो केक लेकर आए थे**, इसलिए फिर से दूसरा केक काटा गया। केक काटने के बाद तीसरी बार फिर से नाव से गिरने का ‘प्रदर्शन’ किया गया।
📹 कैमरे में कैद हुई हरकतें: नौटंकी का डिजिटल प्रसारण**
आज के डिजिटल युग में कोई भी हरकत कैमरे से छिप नहीं सकती। केदार यादव की पूरी स्क्रिप्ट, कैमरे में बखूबी कैद हो गई और **वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया**। लोग इसे हास्यास्पद करार दे रहे हैं और पूछ रहे हैं कि आखिर राजनीति का स्तर इस हद तक कैसे गिर सकता है।
🧒 बच्चों के लिए भी खतरा: कहां गया जिम्मेदारी का भाव?
सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि **वह जगह जहां केदार यादव नाव से गिरे, वहां बच्चे खड़े थे**। पानी की गहराई बच्चों के घुटनों से भी कम थी। यानी यह स्पष्ट था कि गिरना एक पूर्वनियोजित स्टंट था। लेकिन ऐसे स्टंट के दौरान बच्चों की सुरक्षा की अनदेखी करना, एक गंभीर लापरवाही का संकेत है।
---
### **🛐 पहले भी कर चुके हैं 'धार्मिक ड्रामा': सड़क पूजा से लेकर रेलवे ट्रैक तक**
यह पहली बार नहीं है जब केदार यादव ने कैमरे के लिए अजीबोगरीब हरकत की हो। इससे पहले भी जब **तेजस्वी यादव एक हादसे में बाल-बाल बचे थे**, तो केदार यादव ने सड़क पर पूजा करना शुरू कर दिया था। इससे पहले वह कभी **भैंस पर चढ़कर**, कभी **ठेले पर बैठकर** और कभी **रेलवे ट्रैक की पूजा करके** चर्चा में बने रहे हैं।
---
### **🎥 मीडिया में बने रहने की ललक या राजनीतिक अपरिपक्वता?**
विश्लेषकों का मानना है कि यह सब **मीडिया में दिखने और चर्चा में बने रहने की लालसा** का परिणाम है। जब कोई नेता जनसेवा के बजाय खुद को लाइमलाइट में रखने के लिए इस हद तक जाने लगे, तो यह लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है।
---
### **📰 जनता की प्रतिक्रिया: हंसी और नाराजगी दोनों**
सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर **लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रिया** सामने आई है। कई लोग वीडियो देखकर हँस रहे हैं तो कई इसे **नेताओं की गैरजिम्मेदाराना हरकत** मानते हैं। स्थानीय लोग कह रहे हैं कि अगर यही ऊर्जा विकास कार्यों में लगाई जाती, तो क्षेत्र की तस्वीर बदल सकती थी।
---
### **🧠 विश्लेषण: क्या यह सस्ती लोकप्रियता का जरिया है?**
राजनीति में दिखावे और प्रचार का महत्व तो है, लेकिन जब यह हद पार कर जाए, तो यह **जनता की समझदारी का अपमान** माना जाता है। केदार यादव की यह हरकत कहीं से भी गंभीर राजनीतिक व्यवहार नहीं कहा जा सकता। यह लोकतंत्र का तमाशा बनाता है, और विपक्ष को भी मौका देता है कि वे राजद की सोच और कार्यशैली पर सवाल उठा सकें।
---
निष्कर्ष: नौटंकी से नहीं, सेवा से मिलती है लोकप्रियता।
राजनीतिक लोकप्रियता दिखावे से नहीं, जनसेवा से हासिल होती है। लालू यादव जैसे नेता ने अपने संघर्ष और नीतियों के बल पर अपनी पहचान बनाई थी। लेकिन उनके जन्मदिन पर इस तरह की बचकानी और असंगत हरकतें उनकी विरासत का अपमान हैं।
नेताओं को यह समझना होगा कि जनता अब समझदार है। उसे विकास चाहिए, न कि **फर्जी ड्रामा और मीडिया स्टंट**। केदार यादव जैसे नेताओं को आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या वे राजनीति कर रहे हैं या किसी टीवी रियलिटी शो में हिस्सा ले रहे हैं।
📣 अंतिम शब्द: लोकतंत्र में नायक बनें, विदूषक नहीं,
राजनीति में नायक बनने की चाह अच्छी है, लेकिन **विदूषक बनने से केवल ताली मिलती है, सम्मान नहीं**। आशा है कि यह घटना सभी नेताओं के लिए एक सीख बने और वे अपनी भूमिका को गंभीरता से निभाएं।
