🚩 संघ के 100 वर्षों का सम्मान – इतिहास में अमिट छाप 🚩,100 वर्ष: शक्ति, संस्कृति और संकल्प,

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🚩 संघ के 100 वर्षों का सम्मान – इतिहास में अमिट छाप 🚩






प्रस्तावना

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की 100 वर्ष की यात्रा न केवल संगठन के लिए बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए एक गौरव का विषय है। यह वह संगठन है जिसने बिना सत्ता की लालसा, बिना प्रचार की भूख और बिना स्वार्थ के समाज और राष्ट्र के लिए कार्य किया। आज जब भारत सरकार ने संघ के शताब्दी वर्ष पर विशेष डाक टिकट और 100 रुपए का स्मृति सिक्का जारी किया, तो यह घटना इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इस अवसर पर कहा –
“संघ की 100 वर्ष की इस गौरवमयी यात्रा की स्मृति में आज भारत सरकार ने विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के जारी किए हैं।”

यह मात्र एक औपचारिकता नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में संघ के योगदान को मान्यता देने का प्रतीक है।





संघ के 100 वर्ष: एक संक्षिप्त परिचय

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। इसका उद्देश्य केवल संगठन निर्माण नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करना था।

  • स्थापना वर्ष: 1925

  • संस्थापक: डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार

  • मुख्य उद्देश्य: समाज को संगठित कर राष्ट्र को सशक्त बनाना

  • मूल मंत्र: "सर्वे भवन्तु सुखिनः" और "वसुधैव कुटुम्बकम्"

आज संघ लाखों स्वयंसेवकों का सबसे बड़ा सांस्कृतिक-राष्ट्रवादी संगठन बन चुका है, जिसकी शाखाएं न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी कार्यरत हैं।


सम्मान का क्षण: डाक टिकट और स्मृति सिक्का

विशेष डाक टिकट

भारत सरकार द्वारा जारी किया गया विशेष डाक टिकट संघ की शताब्दी यात्रा का प्रतीक है। यह टिकट आने वाली पीढ़ियों को उस आंदोलन की याद दिलाता रहेगा जिसने भारत को आत्मगौरव, संस्कृति और अनुशासन की ओर अग्रसर किया।

स्मृति सिक्का

100 रुपए का स्मृति सिक्का संघ के राष्ट्रनिष्ठ योगदान का प्रतीक है।

  • एक ओर: भारत का राष्ट्रीय चिन्ह (अशोक स्तंभ)।

  • दूसरी ओर: सिंह के साथ भारत माता की वरद मुद्रा में छवि।

यह सिक्का सिर्फ धातु का टुकड़ा नहीं है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए राष्ट्रधर्म और संस्कारों का संदेश है।


संघ की यात्रा: चुनौतियों से सम्मान तक

झूठे प्रोपेगैंडा और राजनीतिक द्वेष

संघ को दशकों तक राजनीतिक द्वेष और विदेशी मानसिकता वाले गुटों ने बदनाम करने की कोशिश की। कभी उस पर प्रतिबंध लगाए गए, कभी उसे हिंसा और साम्प्रदायिकता का ठप्पा लगाया गया।

जनता का विश्वास

लेकिन समय ने साबित किया कि जनता के बीच संघ की जड़ें कितनी गहरी हैं। जब-जब संकट आया, संघ के स्वयंसेवक बिना किसी प्रचार के सेवा के लिए आगे आए।

आज का सम्मान

अब वही संघ, जिसे गाली देना “सेक्युलरिज़्म” माना जाता था, आज भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च स्तर पर सम्मानित किया गया है। यह सम्मान केवल संघ का नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्रवादी समाज का है।


संघ का राष्ट्रनिर्माण में योगदान

1. शिक्षा क्षेत्र में योगदान

  • हजारों विद्या भारती विद्यालयों के माध्यम से राष्ट्रवादी शिक्षा का प्रसार।

  • संस्कार और अनुशासन पर आधारित पाठ्यक्रम।

2. स्वास्थ्य और सेवा कार्य

  • सेवा भारती, एकल विद्यालय और विभिन्न सेवा संस्थाओं के माध्यम से निर्धनों की सहायता।

  • आपदा राहत कार्यों में सबसे पहले सक्रिय।

3. आपदा राहत

  • 2001 का गुजरात भूकंप, 2004 की सुनामी, 2013 की केदारनाथ त्रासदी – हर जगह संघ के स्वयंसेवक बिना भेदभाव के सेवा में जुटे।

4. सामाजिक समरसता

  • जाति, पंथ और भाषा से ऊपर उठकर समरसता का संदेश।

  • दलित, वंचित और पिछड़े वर्गों में कार्य कर सामाजिक एकता को मजबूत किया।

5. स्वदेशी और आर्थिक चेतना

  • ‘स्वदेशी जागरण मंच’ और ‘भारतीय मजदूर संघ’ के माध्यम से आत्मनिर्भरता और आर्थिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा।


"मौन क्रांति" का प्रतीक

RSS ने कभी सत्ता की लालसा नहीं रखी। संघ का कार्य मौन क्रांति जैसा रहा –

  • बिना प्रचार

  • बिना सत्ता की होड़

  • केवल राष्ट्रहित सर्वोपरि

आज वही मौन क्रांति भारत को आत्मनिर्भर और विश्वगुरु बनाने की दिशा में अग्रसर कर रही है।


विरोधियों को करारा जवाब

संघ को बदनाम करने वाले गुटों के लिए यह सम्मान करारा जवाब है।

  • जो लोग संघ को गाली देकर “सेक्युलर” कहलाते थे, आज उनकी राजनीति बौनी हो गई है।

  • जिन्होंने संघ पर प्रतिबंध लगाने की साजिश रची, वही आज देखते हैं कि भारत सरकार संघ को डाक टिकट और स्मृति सिक्के से सम्मानित कर रही है।

यह इतिहास का सबसे बड़ा व्यंग्य है और संघ के अनुशासित कार्यों का सबसे बड़ा प्रमाण भी।


100 वर्ष: शक्ति, संस्कृति और संकल्प

संघ का मतलब केवल एक संगठन नहीं, बल्कि –

  • शक्ति – राष्ट्र रक्षा और आत्मबल।

  • संस्कृति – भारतीय जीवन मूल्यों और परंपराओं का संरक्षण।

  • संकल्प – भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना।

संघ की शाखाएं अनुशासन, सेवा और संगठन की प्रयोगशाला रही हैं, जहां से निकले स्वयंसेवक समाज में अलग पहचान बनाते हैं।


भविष्य की ओर

शताब्दी वर्ष केवल अतीत की उपलब्धियों का उत्सव नहीं, बल्कि भविष्य की जिम्मेदारी का स्मरण भी है।

  • आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्रधर्म, सेवा और समरसता का मार्ग दिखाना।

  • भारत को आत्मनिर्भर और वैश्विक नेतृत्व की भूमिका में स्थापित करना।

  • समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास और सम्मान पहुंचाना।



संघ के 100 वर्ष केवल एक संगठन की यात्रा नहीं, बल्कि भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की गाथा हैं। आज जब भारत सरकार ने स्मृति सिक्का और डाक टिकट जारी कर संघ का सम्मान किया है, तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।

यह सम्मान हर उस स्वयंसेवक की तपस्या का प्रतिफल है जिसने राष्ट्र को सर्वोपरि रखकर अपना जीवन समर्पित किया।

🚩 संघ की 100वीं वर्षगांठ भारत की आत्मा के जागरण और सांस्कृतिक चेतना की विजय है। 🚩



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