संत शिरोमणि बाबा गणिनाथ जयंती समारोह सह सद्भावना मेला का भव्य शुभारंभ
हाजीपुर के कौनहारा गोविंद घाट पर भक्तों का उमड़ा जनसैलाब
✍️ लेखक : रूपेश कुमार सिंह
आध्यात्मिकता और सद्भावना का अद्भुत संगम
हाजीपुर के ऐतिहासिक कौनहारा गोविंद घाट पर रविवार को संत शिरोमणि बाबा गणिनाथ जयंती समारोह सह सद्भावना मेला का भव्य आयोजन किया गया। यह अवसर सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता, सद्भाव और भक्ति का जीवंत प्रतीक बन गया।
हजारों की संख्या में पहुँचे भक्तों ने बाबा गणिनाथ के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित की और उनकी शिक्षाओं को जीवन में आत्मसात करने का संकल्प लिया।
दीप प्रज्ज्वलन कर हुआ समारोह का शुभारंभ
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। हाजीपुर विधायक अवधेश सिंह, बिहार विधान परिषद सदस्य श्री रणवीर नंदन और बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के माननीय अध्यक्ष की उपस्थिति ने समारोह को और भी गरिमामय बना दिया।
नेताओं ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन कर जयंती समारोह की औपचारिक शुरुआत की और बाबा गणिनाथ की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।
श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए नेताओं का संदेश
अवधेश सिंह का संबोधन
हाजीपुर विधायक अवधेश सिंह ने बाबा गणिनाथ के जीवन और उनके उपदेशों पर प्रकाश डालते हुए कहा:
“बाबा गणिनाथ केवल एक संत नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने वाले महान विभूति थे। उन्होंने सद्भावना, समानता और सेवा का संदेश दिया, जो आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है।”
रणवीर नंदन का वक्तव्य
श्री रणवीर नंदन ने कहा:
“बाबा गणिनाथ का जीवन हमें यह सिखाता है कि समाज की वास्तविक ताकत एकता और भाईचारे में है। अगर हम उनके मार्ग पर चलें तो समाज से हर तरह का भेदभाव मिट सकता है।”
धार्मिक न्यास बोर्ड अध्यक्ष का विचार
धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा कि बाबा गणिनाथ जैसे संतों की जयंती हमें अपने समाज की जड़ों और संस्कृति से जोड़े रखने का अवसर देती है। उन्होंने श्रद्धालुओं से आग्रह किया कि वे संत के उपदेशों को जीवन का हिस्सा बनाएं।
भक्ति और श्रद्धा से भरा माहौल
पूरे आयोजन स्थल पर भक्ति का वातावरण छाया रहा। भजन-कीर्तन, शंख-ध्वनि और भक्तों के जयकारों से कौनहारा घाट गूंज उठा। श्रद्धालु भावविभोर होकर बाबा गणिनाथ के भजनों में डूबे रहे।
महिलाओं ने पारंपरिक स्वर में मंगल गीत गाए, वहीं युवाओं ने सेवा कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
सामाजिक सद्भाव का प्रतीक
सद्भावना मेला का सबसे बड़ा संदेश था – एकता और सामाजिक समरसता। यहाँ सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोग एकत्रित हुए। किसी ने पूजा की, किसी ने भजन गाए, तो किसी ने सेवा कार्यों में सहयोग किया।
यह दृश्य स्पष्ट कर रहा था कि संत गणिनाथ की शिक्षाएँ आज भी समाज को जोड़ने की शक्ति रखती हैं।
धार्मिक गतिविधियों से भव्य बना आयोजन
जयंती समारोह में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ आयोजित की गईं।
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भजन-कीर्तन ने वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया।
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संकीर्तन मंडलियों ने संत के जीवन और उपदेशों पर आधारित प्रस्तुति दी।
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प्रवचन सत्रों में संतों और विद्वानों ने बाबा गणिनाथ के जीवन पर विचार रखे।
हर गतिविधि ने भक्तों के मन में आस्था और श्रद्धा की नई ऊर्जा भर दी।
श्रद्धालुओं का उमड़ा जनसैलाब
कौनहारा घाट पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ पड़ी। सुबह से ही भक्तों का जत्था पहुँचता रहा और देर शाम तक मेला स्थल गुलजार रहा।
भक्तों ने बताया कि बाबा गणिनाथ की जयंती उनके लिए आध्यात्मिक उत्सव है, जिसे वे पूरे हर्षोल्लास और भक्ति भाव से मनाते हैं।
सेवा कार्य और प्रसाद वितरण
इस अवसर पर विभिन्न सामाजिक संगठनों ने सेवा शिविर लगाए।
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श्रद्धालुओं के लिए भोजन और प्रसाद वितरण की व्यवस्था की गई।
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स्वास्थ्य शिविर के माध्यम से लोगों को नि:शुल्क परामर्श और दवा दी गई।
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युवाओं ने साफ-सफाई और यातायात नियंत्रण में सहयोग किया।
यह सब बाबा गणिनाथ की सेवा भावना को ही प्रतिध्वनित कर रहा था।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने बढ़ाई शोभा
सांस्कृतिक मंच पर कलाकारों ने संत गणिनाथ के जीवन और उपदेशों पर आधारित नाटक और लोकगीत प्रस्तुत किए।
लोक कलाकारों ने भोजपुरी और मैथिली गीतों से वातावरण को रंगीन कर दिया। बच्चे और महिलाएँ भी उत्साह से सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल हुईं।
सामाजिक संदेश
यह आयोजन केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण रहा। यहाँ से समाज को यह संदेश गया कि भाईचारा, सद्भाव और एकता ही प्रगति का मार्ग है।
संत गणिनाथ की शिक्षाओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब तक समाज में आपसी प्रेम और सम्मान नहीं होगा, तब तक विकास अधूरा रहेगा।
हाजीपुर के कौनहारा गोविंद घाट पर आयोजित संत शिरोमणि बाबा गणिनाथ जयंती समारोह सह सद्भावना मेला भक्ति, एकता और सामाजिक समरसता का अनुपम संगम था।
हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति, नेताओं का मार्गदर्शन, भजन-कीर्तन और सेवा कार्यों ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया। बाबा गणिनाथ की जयंती ने फिर एक बार यह साबित कर दिया कि उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज को जोड़ने और नई दिशा देने की शक्ति रखती हैं।
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